जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके।
आरती ओवाळीतें। ज्ञानदीपकळिके।। धृ.।।
हरअर्धांगी वससी। जासी यज्ञा माहेरासी।
तेथें अपमान पावसी। यज्ञकुंडींत गुप्त होसी। जय. ।।1।।
रिघसी हिमाद्रीच्या पोटी। कन्या होसी तू गोमटी।
उग्र तपश्चर्या मोठी। आचरसी उठाउठी ।।जय. ।।2।।
तापपंचाग्निसाधनें। धूम्रपानें अधोवदनें।
केली बहु उपोषणें। शंभु भ्रताराकारणें। ।।जय.।।3।।
लीला दाखविसी दृष्टी। हें व्रत करिसी लोकांसाठी।
पुन्हां वरिसी धूर्जटी। मज रक्षावें संकटीं।। जय.।। 4।।
काय वर्ण तव गुण। अल्पमति नारायण।
मातें दाखवीं चरण। चुकवावें जन्म मरण। जय. देवी।।5।।
-हरतालिका आरती
इस वेबसाइट पर चालीसा/आरती/स्तोत्र सिर्फ भक्ति को ध्यान में रखते हुए दिया गया है. इसके द्वारा हम किसी भी तरह से इस पर हक्क नहीं जता रहे. इसका असली हक इसके असली लेखक/कवी का ही रहेगा.